लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2022
सपना था वो मेरा जिसका सपना खुद नाम था
प्यार था मुझे उससे बस, ओर न कोई काम था
दिल में बसी है सूरत उसकी और जुबां ख़ामोश है
तन्हाइयों में लुत्फ है महफ़िल में कभी गुमनाम था
इक रोज़ नज़रें मिली फिर मदहोशी का आलम बस
इस नशे ने जहां पहुंचाया ये तो अलग ही मुकाम था
एक मुलाक़ात मुकर्रर हुई दिल से दिल की बातों में
इंतजार के लम्हे हिस्से आएं जब वक़्त ए शाम था
राहें जुदा हुई न अब पहृले से ही थी अलग-अलग
गुमान हुआ है ये मुझे अब पहले बड़ा बदगुमान था
Reyaan
13-Apr-2022 12:23 PM
Nice
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Shnaya
13-Apr-2022 12:06 PM
Nice 👍🏼
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Sachin dev
13-Apr-2022 11:42 AM
Very nice 👍🏼
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